Saturday, October 3, 2009

क्रांतिकारी आतंकवादी



हमारे देश में देश की आजादी के दिवानों में शहीद-ए-आजम सरदार भगतसिंह का नाम शिद्दत से लिया जाता रहा हैं । हाल ही में मैंने आजादी की लडाई लडने वाले क्रांतिकारियों को "क्रांतिकारी आतंकवादी" शब्द से संबोधित करने वाली किताब पढी । किताब में उन्हें क्रांतिकारी आतंकवादी शब्द से संबोधित करने के पीछे शायद हमारे देश के नीति निर्माताओं का यह तर्क हो कि हिंसा किसी भी स्वरूप में स्वीकार्य नहीं हैं । यह देश पूरी दुनिया में गांधीजी के देश के रूप में जाना जाता हैं । अब जबकि पूरी दुनिया अस्थिरता और हिंसा के दौर से गुजर रही हैं, तब गांधीजी की अहिंसावादी रणनीति और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गई हैं ।

हालांकि मैं इस बात से सहमत हूँ कि गांधीजी की अहिंसावादी नीति सही और कारगर हैं, फिर भी मुझे सरदार भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों को आतंकवादी जैसे शब्द से संबोधित करना न्यायोचित नहीं लगता । शाब्दिक रूप में आतंकवादी का अर्थ उस इंसान से हैं जो किसी दूसरे के मन में आतंक या डर फैलाएं । लेकिन व्यवहारिक तौर पर आतंकवादी शब्द का उपयोग देश को तोडने या नुकसान पहुंचाने वाले उन असामाजिक तत्वों से लिया जाता हैं जो हिंसा का मार्ग अपनाकर आतंक फैलाते हैं ।

सरदार भगतसिंह एक उच्च आदर्शों वाले इंसान थे, जो मात्र २४ वर्ष की उम्र में ही अपने देश के लिये फांसी पर लटक गये । उन्होंने अपने देश की आजादी के सपने को साकार करने के लिये उग्र तरीके अपनाये । सान्डर्स की हत्या लालाजी की मृत्यु का बदला लेने के ईरादे से की गई थी । एसेम्बली में बम गिराते समय उन्होंने ईस बात का ध्यान रखा कि किसी की जानमाल का नुकसान न हो । बम गिराने के पीछे उनका उद्देश्य कोर्ट की कार्रवाही के दौरान होने वाली बहस के जरिये अपनी बात एवं मकसद लोगों तक पहुंचाना था । इसी कारण उन्होंने बम गिराने के बाद स्वयं ही अपनी गिरफ्तारी दे दी थी ।

इसके विपरीत अपने देश में पडौसी देश के आतंकवादी चुपके से आकर कायरतापूर्ण निर्दोष लोगों को मारकर भागने की कोशिश करते हैं । उन कायरों को भी आतंकवादी कहा जाता हैं और भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरू, चन्द्रशेखर आजाद जैसे सिपाहियों को भी आतंकवादी कहा जाता हैं । सीमा पर जब युद्ध होता हैं तो आमने - सामने की लडाई में भी हिंसा होती हैं, उन सिपाहियों को फौजी या देश के रक्षक कहते हैं न कि आतंकवादी ।

भगवान श्री राम ने भी रावण और उसकी सेना का संहार किया था । क्या उन्हें भी आतंकवादी कहा जायेगा ?
हमारी देश की न्यायपालिका भी जघन्य अपराधों के लिये दोषियों को मौत की सजा सुनाती हैं । क्या वह न्यायोचित हैं? दुनिया के कई देशों में मौत की सजा नहीं सुनाई जाती । इसका कारण मानवाधिकार हैं । हमें भी बचपन से यही शिक्षा दी जाती हैं कि पाप से घृणा करो, पापी से नहीं ।
अब चूंकि भारत आजाद हैं और अब किसी को अपनी बात कहने का पूर्ण अधिकार हैं । अतः अब हिंसा से अपने ही देश को क्षति होगी । शायद इसी कारण से सरकार उन क्रांतिकारियों को भी आतंकवादी क्रांतिकारी (Revolutionary Terrorist) कहकर संबोधित करती हैं ।
आज की युवा पीढी के आदर्श फिल्मस्टार, क्रिकेटर, उद्योगपति, करोडपति ईत्यादि हैं, जबकि भगतसिंह के आदर्श कार्ल मार्क्स और लेनिन जैसे विचारक थे । उनकी विचारधारा देश की आजादी के बाद सभी को समानता का अधिकार एवं समान अवसर प्रदान करने वाली थी ।
इसलिये हमारे देश में उन स्वतन्त्रता के सपने देखने वालों को आतंकवादी कहना न्यायोचित नहीं हैं ।