Friday, September 11, 2009

देशसेवक

देश बढ रहा हैं । हमारे देश में करोडपतियों की संख्या बढ रही हैं । वैसे हमारी जनसंख्या भी तो सौ करोड को पार कर चुकी हैं । हमारे देश का काला धन भी हजारों लाखों करोडों में हैं । हमारे देश में देशसेवकों की संख्या भी बढ रही हैं । चिंता की बात नहीं हैं । गरीबी, भूखमरी, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई, प्रदूषण ईत्यादि समस्याएं भी बढ रही हैं ।
मैं देशसेवकों की बात कर रहा था । हमारे देश में जब भी चुनाव आते हैं, चाहे वो लोकसभा हो, विधानसभा हो या स्थानीय निकाय चुनाव, प्रत्याशी वोट मांगते वक्त कहते हैं कि हम देश की सेवा करना चाहते हैं, आपकी सेवा करना चाहते हैं । इसी तरह जब भी किसी प्रशासनिक सेवा की भर्ती का साक्षात्कार लिया जाता हैं और प्रतियोगी से पूछा जाता हैं कि आप इस सेवा में क्यूं जाना चाहते हैं तो जवाब हमेशा एक ही मिलता हैं "मैं देश की सेवा करना चाहता हूँ " ।
अब सवाल यह उठता हैं कि जब इतने लोग देश की सच्चे दिल से सेवा करना चाहते हैं तो यह देश तरक्की करने में इतना समय क्यूं लगा रहा हैं. इसका अर्थ यह हैं कि यहां के लोग निठल्ले हैं । बेचारे जनप्रतिनिधि और अधिकारी सेवा करते करते थक गये, लोग हैं कि सेवा करवाते हुए नहीं थके । जापान और कोरिया जैसे देशों के लोग देश के लिये काम करते हैं और अपने देश में देशसेवक लोगों के लिये काम करते हैं और लोग सेवा करवाकर उन्हें पूण्य कमाने का मौका देते हैं ।
गीता में कृष्ण ने कहा था - यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम् । अब यहां के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों ने देशसेवा करके इतना पुण्य कमाया हैं कि देश में धर्म की ग्लानि नहीं हो रही हैं और यही कारण हैं कि कृष्ण को अवतार लेने की आवश्यकता नहीं पडी ।
हमारे देश में लखपति बी.पी.एल.(गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले) भी हैं । गोयाकि उनके लिये गरीबी की रेखा को कद से ऊंचा उठा लिया जाता हैं । लोग बैंक से कर्ज लेकर चुकाना भूल जाते हैं । बैंक के अधिकारी बेजा ही उनके पीछे कागज खराब करते हैं क्योंकि जब हनुमानजी जो हमारे भगवान हैं, वे भी भूलने की बीमारी से पीडित थे, तो आम आदमी की औकात ही क्या । कुछ लोगों के घर, कारखानों और कुंओं पर बिजली के तार मीटर के बिना ही जोड दिये जाते हैं । इसमें भी कसूर विद्युत विभाग का हैं । अरे भला इतनी औपचारिकताओं को पूर्ण करने में कोई अपना कीमती समय क्यूं खराब करें । जब अपने सामने खम्बा हैं तो दो तार जोडने में कितना समय लगता हैं । बचा हुआ समय सास बहू के सीरियल देखने के काम आ जाता हैं । वैसे भी औपचारिक कनेक्शन के बाद बिल भरने की कतार में खडे रहना, लाईन खराब होने पर लाईनमेन के चक्कर लगाना, उसकी जेब गरम करना ईत्यादि झंझटों से मुक्ति मिल जाती हैं ।
चलिये हमारा देश के लोग देश को जैसे तैसे चला लेते हैं वरना इतना बडा देश चलाने की जुर्रत कोई अमेरिका भी नहीं कर सकता । वैसे अमेरिका भी कोई देश हैं जहां सडक पर थूकना भी मना हैं । अरे भई आजादी मिलने का कोई तो मतलब होना चाहिये । वरना अपने देश की धरती पर थूकने पर भी जुर्माना भरना पडे, ये कहां का इंसाफ । मुझे कोई कितना भी कहे मैं ये देश छोडकर जाने वाला नहीं, मुझे यहां के जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से सेवा करवाने का अवसर मिल रहा हैं, ऐसा अवसर कहीं और नहीं ।.
जय हिन्द !

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