Sunday, January 31, 2010

My Name is William Shakespeare

मशहूर लेखक और कवि विलियम शेक्सपीयर ने कहा था- What is in the name.
एक बार की बात हैं शेक्सपीयर होम लोन अप्लाय करने के लिये बैंक में गये । वहां मैनेजर से जाकर अपना परिचय देते हुए आने का कारण बताया । मैनेजर ने कहा कि आपको अपने लोन के लिये आईडी प्रूफ और एड्रेस प्रूफ देना पडेगा । शेक्सपीयर ने पूछा-क्यों? मैनेजर ने कहां-ये साबित करने के लिये कि आप विलियम शेक्सपीयर ही हैं । शेक्सपीयर ने कहा - इसमें साबित करने की बात कैसे आई । मुझसे आप रोमियो जुलियट, मेक्बेथ या ओथेलो के बारे में पूछ लिजीये । मैनेजर ने कहां - सर हमें इनके बारे में पता नहीं हैं तो पूछेंगे क्या? आप प्रूफ ले आओ । शेक्सपीयर बोले- सर, किस तरह के प्रूफ से काम चल जायेगा? मैनेजर  - राशनकार्ड, ड्राईविंग लाईसेन्स, पैन कार्ड, पासपोर्ट ईत्यादि ।
शेक्सपीयर ने अपना इरादा बदल दिया और सोचा किसी और देश में जाकर बस जाते हैं । एयरपोर्ट पर जाकर टिकट लेने के लिये इन्क्वायरी की तो बताया पासपोर्ट और वीजा लगेगा । शेक्सपीयर ने पूछा इनके बगैर नहीं चलेगा? ऑफिसर ने बताया - सर इनके बगैर आप आदमी ही नहीं हैं तो फिर आपको माइग्रेशन की परमिशन नहीं मिल सकती । ये प्रूव करना पडेगा कि आप ही विलियम शेक्सपीयर हैं ।
शेक्सपीयर अपने घर वापस आ गये । और सोचने लगे मुझे ये साबित करना पड रहा हैं कि मैं ही विलियम शेक्सपीयर हूँ । शेक्सपीयर को तब समझ में आया कि तंत्र में रहने के लिये नाम भी होना चाहिये और उसे प्रूव करने वाले दस्तावेज भी ।
अब शेक्सपीयर नहीं कहेगे कि :"What is in the name.

Friday, January 29, 2010

माया ही माया

उत्तर प्रदेश में मायावती सरकार ने विधानसभा में मायावती सरकार द्वारा बनाये गये स्मारकों एवं मूर्तियों की सुरक्षा के लिये पुलिस बल लगाये जाने सम्बन्धी बिल पेश किया हैं । इस पर प्रबुद्ध न्यूज चैनलों द्वारा बहस छेडी गई । मायावती सरकार के रवैये को सभी बुद्धिजीवी तानाशाही कहते हैं । मायावती ने अपने प्रदेश में मूर्तियों और स्मारकों के निर्माण पर हजारों करोड रूपये खर्च किये हैं । इस पर मायावती ने देश, विपक्ष और कोर्ट की खरी खोटी भी सुनी हैं । लेकिन बहनजी सतत अपने लक्ष्य की और अग्रसर हैं ।
आप  सोच रहे होंगे कि मुझे मायावती के इस कदम में कौनसा लक्ष्य दिखाई पडा हैं । जनाब आप इतिहास की किताबें खोल कर देखिये, आपको मिस्र की सभ्यता या सिन्धु घाटी की सभ्यता में उन लोगों के ही नाम पता चलेंगे जिन्होंने अपने लिये स्मारक बनवाये थे । अपने देश में आने वाले विदेशी पर्यटक भी स्मारकों, किलों, महलों को ही देखते हैं न कि अन्य जगहों को । यह तो बहनजी की दूरदर्शिता हैं कि वो अभी से स्मारकों और मूर्तियों पर पैसे खर्च करके खुद को इतिहास में जिन्दा रखना चाहती हैं । मान लिजिये यदि अपनी सभ्यता किसी प्राकृतिक आपदा से लुप्त हो जाये तो आने वाली नयी सभ्यताएं जब खुदाई करके इन स्मारकों को निकालेगी तो बहनजी का इतिहास जीवित हो उठेगा । गौरतलब हैं कि कागजों में दबा इतिहास तो समय के साथ मिट्टी में मिल जायेगा परन्तु पत्थरों पर उकेरा गया अमर हो जायेगा ।
दूसरा मुद्दा यह था कि यह जनता का पैसा बर्बाद किया जा रहा हैं । यदि मेरी राय पूछी जाये तो इसमें भी बहनजी की दूरदर्शिता ही तो हैं । यदि शाहजहां ने इसी तरह की सोच रखकर ताजमहल नहीं बनवाया होता तो आज भारत को विदेशी पर्यटक कैसे मिलते? आज ताजमहल की वजह से आगरा और उत्तरप्रदेश को विश्व में पहचान मिली हैं और साथ ही लाखों लोगों को रोजगार भी । यानि फसल बोई शाहजहां ने और काट हम लोग रहे हैं । जिस प्रदेश में स्मारकों का विश्व सम्राट मौजूद हो वहां की दूरदर्शी मुख्यमंत्री को अपने स्मारक बनाने के विचार कैसे नहीं आयेगे ।

Thursday, January 28, 2010

रिपब्लिक................


हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी २६ जनवरी को मेरी आंख पडोस की स्कूल में चल रहे देशभक्ति के गीतों से खुल गई । यह क्रम हर वर्ष १५ अगस्त और २६ जनवरी को सतत चलता रहता हैं । लताजी "ए मेरे वतन के लोगों" गाती हैं तो महेन्द्र कपूर "मेरे देश की धरती सोना उगले" का राप अलापते हैं । लेकिन मेरा ध्यान खींचा मुकेश के "होठों पे सच्चाई रहती हैं" गाने ने । कितनी सच्चाई से यह गीत लिखा, गाया और फिल्माया गया था । शायद उस दौर में सच्चाई रही होगी और लोगों को यह गीत अपना लगा होगा । अब तो सौ में से अस्सी बेईमान के संवाद पर तालियं पडती हैं और यह भी भूल जाते हैं कि यह संवाद अपने पर भी तो लागू होता हैं ।
जब हम बेईमानी और भ्रष्टाचार को मिटाने की बात करते हैं तो खुद को उसमें शामिल नहीं करते । शायद बेईमानी और भ्रष्टाचार मिटाने की शुरूआत खुद से और परिवार से करनी चाहिये । आम आदमी राजनीति और कर्मचारियों के भ्रष्ट होनी की बात करते हैं तो कर्मचारी अधिकारियों और नेताओं के भ्रष्ट होने की बात करते हैं । अधिकारी व्यापारियों की तो व्यापारी हर आदमी के भ्रष्ट आचरण की बात करता हैं । यानि कोई दूध का धुला नहीं हैं ।
इस कुंए में ही भांग पडी हैं तो क्या कर सकते हैं । आम आदमी भी गाहे बगाहे अपने आचरण को भ्रष्ट कर ही लेता हैं । कभी टेक्स चुराकर तो की बिजली चुराकर, कभी बिना टिकट सफर करके तो कभी किसी प्रकार की सरकारी योजना के लिये खुद को गरीब ठहराकर । हम सभी अपने अपने कद और हैसियत के अनुसार भ्रष्ट आचरण करते हैं और इस फिराक में रहते हैं कि कोई बडा हाथ मारने का चान्स मिल जाये । हमने ही तो अपने स्वार्थ के लिये कर्मचारियों और अधिकारियों को रिश्वत लेना सिखाया । हमने ही नेताओं से अपने काम निकालने के लिये कमीशन या अन्य प्रलोभन दिया । बिना काबिलियत के भी नौकरी पाने की लालच में मंत्रियों और अधिकारीगण को सिफारिश करवाई या अनियमितताओं वाले काम निकालने के लिये अधिकारियों को गिफ्ट पकडाये ।

व्यापारी वर्ग भी मिलावट करना, मुनाफाखोरी, जमाखोरी, कम तोलना, घटिया किस्म के माल बेचना ईत्यादि भ्रष्ट आचरण वाले काम करते हैं साथ ही टेक्स चोरी करने के लिये बिल नहीं बनाने जैसे काम भी करते हैं । शायद हम भी उनसे बिल नहीं मांगकर उनकी चोरी में हिस्सेदार बन जाते हैं । बस या रेल्वे में बिना टिकट यात्रा करना या बच्चों की उम्र कम बताकर टिकट में रियायत लेना, बिजली के मीटर से छेडछाड करना इत्यादि प्रत्यक्ष भ्रष्ट आचरण भी आम आदमी ही करता हैं । रेल्वे और बसों की जर्जर अवस्था के साथ-साथ रेल्वे स्टेशन और बस स्टेशनों पर अव्यवस्थाओं के लिये भी हम ही जिम्मेदार हैं । लेकिन इसके लिये भी हम व्यवस्था को जिम्मेदार मानते हैं । शायद ही कोई मंत्री बस में सफर करता हो और अपनी सीट को फाडने का प्रयास करता हो । सार्वजनिक सम्पत्तियों पर अतिक्रमण कर हम ही सरकार को चूना लगाते हैं । सडक पर आम आदमी ही अपनी पीक थूकता हैं और सार्वजनिक उद्यानों के पौधे हम ही नष्ट करते हैं ।
इस वर्ष हमने अपना ६१ वां गणतन्त्र दिवस मनाया । यानि हमने गणतन्त्र के ६० वर्ष पूरे कर लिये । सरकारी सेवा में ६० वर्ष की उम्र अधिवार्षिकी आयु यानि सेवानिवृति की आयु मानी जाती हैं । मेरे कहने का तात्पर्य यह कदापि नहीं हैं कि हमें गणतन्त्र को रिटायर करना चाहिये । इस वर्ष हमें अपने अधिकारों के तन्त्र को रिटायर करना चाहिये और गणतन्त्र और देश के प्रति अपने कर्तव्यों को सिंहासन  पर बिठाना चाहिये । अब देश ने हमें क्या दिया के बजाय देश को हमने क्या दिया पर गौर करना चाहिये । गत ६० वर्षों में हमने गणतन्त्र द्वारा प्रदत्त अधिकारों के उत्सव मनाये हैं । हमने गणतन्त्र द्वारा मिले अधिकारों का भरपूर उपयोग व दुरूपयोग किया । लेकिन अब हमें अपने देश के प्रति कर्तव्यों के निर्वहन का संकल्प लेना चाहिये ।
शायद इसी प्रकार हम लम्बे समय तक गणतन्त्र दिवस मनाने का सुख भोग सकेंगे ।
जय हिन्द ।