Thursday, January 28, 2010

रिपब्लिक................


हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी २६ जनवरी को मेरी आंख पडोस की स्कूल में चल रहे देशभक्ति के गीतों से खुल गई । यह क्रम हर वर्ष १५ अगस्त और २६ जनवरी को सतत चलता रहता हैं । लताजी "ए मेरे वतन के लोगों" गाती हैं तो महेन्द्र कपूर "मेरे देश की धरती सोना उगले" का राप अलापते हैं । लेकिन मेरा ध्यान खींचा मुकेश के "होठों पे सच्चाई रहती हैं" गाने ने । कितनी सच्चाई से यह गीत लिखा, गाया और फिल्माया गया था । शायद उस दौर में सच्चाई रही होगी और लोगों को यह गीत अपना लगा होगा । अब तो सौ में से अस्सी बेईमान के संवाद पर तालियं पडती हैं और यह भी भूल जाते हैं कि यह संवाद अपने पर भी तो लागू होता हैं ।
जब हम बेईमानी और भ्रष्टाचार को मिटाने की बात करते हैं तो खुद को उसमें शामिल नहीं करते । शायद बेईमानी और भ्रष्टाचार मिटाने की शुरूआत खुद से और परिवार से करनी चाहिये । आम आदमी राजनीति और कर्मचारियों के भ्रष्ट होनी की बात करते हैं तो कर्मचारी अधिकारियों और नेताओं के भ्रष्ट होने की बात करते हैं । अधिकारी व्यापारियों की तो व्यापारी हर आदमी के भ्रष्ट आचरण की बात करता हैं । यानि कोई दूध का धुला नहीं हैं ।
इस कुंए में ही भांग पडी हैं तो क्या कर सकते हैं । आम आदमी भी गाहे बगाहे अपने आचरण को भ्रष्ट कर ही लेता हैं । कभी टेक्स चुराकर तो की बिजली चुराकर, कभी बिना टिकट सफर करके तो कभी किसी प्रकार की सरकारी योजना के लिये खुद को गरीब ठहराकर । हम सभी अपने अपने कद और हैसियत के अनुसार भ्रष्ट आचरण करते हैं और इस फिराक में रहते हैं कि कोई बडा हाथ मारने का चान्स मिल जाये । हमने ही तो अपने स्वार्थ के लिये कर्मचारियों और अधिकारियों को रिश्वत लेना सिखाया । हमने ही नेताओं से अपने काम निकालने के लिये कमीशन या अन्य प्रलोभन दिया । बिना काबिलियत के भी नौकरी पाने की लालच में मंत्रियों और अधिकारीगण को सिफारिश करवाई या अनियमितताओं वाले काम निकालने के लिये अधिकारियों को गिफ्ट पकडाये ।

व्यापारी वर्ग भी मिलावट करना, मुनाफाखोरी, जमाखोरी, कम तोलना, घटिया किस्म के माल बेचना ईत्यादि भ्रष्ट आचरण वाले काम करते हैं साथ ही टेक्स चोरी करने के लिये बिल नहीं बनाने जैसे काम भी करते हैं । शायद हम भी उनसे बिल नहीं मांगकर उनकी चोरी में हिस्सेदार बन जाते हैं । बस या रेल्वे में बिना टिकट यात्रा करना या बच्चों की उम्र कम बताकर टिकट में रियायत लेना, बिजली के मीटर से छेडछाड करना इत्यादि प्रत्यक्ष भ्रष्ट आचरण भी आम आदमी ही करता हैं । रेल्वे और बसों की जर्जर अवस्था के साथ-साथ रेल्वे स्टेशन और बस स्टेशनों पर अव्यवस्थाओं के लिये भी हम ही जिम्मेदार हैं । लेकिन इसके लिये भी हम व्यवस्था को जिम्मेदार मानते हैं । शायद ही कोई मंत्री बस में सफर करता हो और अपनी सीट को फाडने का प्रयास करता हो । सार्वजनिक सम्पत्तियों पर अतिक्रमण कर हम ही सरकार को चूना लगाते हैं । सडक पर आम आदमी ही अपनी पीक थूकता हैं और सार्वजनिक उद्यानों के पौधे हम ही नष्ट करते हैं ।
इस वर्ष हमने अपना ६१ वां गणतन्त्र दिवस मनाया । यानि हमने गणतन्त्र के ६० वर्ष पूरे कर लिये । सरकारी सेवा में ६० वर्ष की उम्र अधिवार्षिकी आयु यानि सेवानिवृति की आयु मानी जाती हैं । मेरे कहने का तात्पर्य यह कदापि नहीं हैं कि हमें गणतन्त्र को रिटायर करना चाहिये । इस वर्ष हमें अपने अधिकारों के तन्त्र को रिटायर करना चाहिये और गणतन्त्र और देश के प्रति अपने कर्तव्यों को सिंहासन  पर बिठाना चाहिये । अब देश ने हमें क्या दिया के बजाय देश को हमने क्या दिया पर गौर करना चाहिये । गत ६० वर्षों में हमने गणतन्त्र द्वारा प्रदत्त अधिकारों के उत्सव मनाये हैं । हमने गणतन्त्र द्वारा मिले अधिकारों का भरपूर उपयोग व दुरूपयोग किया । लेकिन अब हमें अपने देश के प्रति कर्तव्यों के निर्वहन का संकल्प लेना चाहिये ।
शायद इसी प्रकार हम लम्बे समय तक गणतन्त्र दिवस मनाने का सुख भोग सकेंगे ।
जय हिन्द ।

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